रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

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Friday 25 March 2016

कहानी संग्रह 'लेखक की आत्मा'/मेरी नज़र में

वाह अर्चना!

आज मैं एक ऐसी कथाकार से आपका परिचय करवाना चाहती हूँ जो मेरी वेब पर आगमन के समय की मित्र हैं। मैं छंद विधा में लिखा करती थी और वो छंदमुक्त कविताएँ लिखने में सिद्धहस्त थीं। उनकी लघुकथाएँ और कहानियाँ मैं अक्सर पढ़ा करती थी और पसंद भी करती थी। आज उनका कहानी संग्रह, जो उन्होंने  उपहार स्वरूप मुझे भेजा, देखकर आश्चर्य मिश्रित सुखद अनुभूति हुई कि वेब से दूरी बनाकर उन्होंने  कठिन तपस्या शुरू कर दी है और इसी का परिणाम किताब के रूप में मेरे सामने है। किताब अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और १२०  पृष्ठों की पेपर बैक किताब का मूल्य सिर्फ १२० रुपए है। किताब की पहली कहानी जो किताब का शीर्षक भी है ‘लेखक की आत्मा’ पढ़ना शुरू करते ही मैं इतनी प्रभावित हो गई कि पूरी किए बिना अपने स्थान से हिली भी नहीं, कहानी के ये शब्द “मुझे लिखना है, केवल लिखना है क्योंकि मैं सिर्फ प्रकाशित होने के लिए नहीं लिखता, मैं लिखता हूँ अपनी आत्मा की संतुष्टि के लिए”

    मेरे मन में बार बार प्रतिध्वनित होते रहे फिर तो उत्सुकता वश एक और करते करते तीन कहानियाँ एक साथ पढ़ डालीं। भाषा, शिल्प, कहने की शैली इतनी उम्दा कि मन पढ़ते पढ़ते डूब ही जाए। हर कहानी सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई है, एक संदेश और चेतावनी देती हुई है। पढ़ते पढ़ते पाठक भी उसके पात्रों का हिस्सा बन जाते हैं और कुछ कर गुजरने की भावना मन में हिलोरें लेने लगती है। संवेदनाएँ और सामाजिक सरोकार ही हर कहानी का कथानक बुनते हैं।  हमारे समाज में जो होता आया है उन विषयों को सुंदर कहानी का रूप देकर प्रस्तुत करना एक कलाकार के श्रम को ही सिद्ध करता है, और अर्चना जी ने बहुत कम समय में यह उपलब्धि हासिल कर ली है, लगता ही नहीं कि यह उनका पहला कहानी संग्रह है। हर कहानी पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोडती है।  जिस तरह तिनका-तिनका एकत्र कर पक्षी नीड़ बुनता है, इसी तरह  अर्चना जी ने शब्द-शब्द के तिनके इकट्ठे कर जो नीड़ बुना है और उसमें भावनाओं को संरक्षित किया है, उसे देखकर मन से बस यही शब्द निकलते हैं -वाह अर्चना!

उदाहरण स्वरूप मैं आपके समक्ष कुछ कहानियों के वाक्य जो मन को गहराई तक छू गए, प्रस्तुत कर रही हूँ।

 ‘किरदार’

यह कहानी एक ऐसे शख्स की है जो मजबूरी में पारिवारिक जवाबदरियों के निर्वाह के लिए एक पागल लड़की से शादी कर लेता है। गौरतलब है-
“क्या जरूरतों का कद आदर्शवाद से इतना ऊँचा हो गया कि पैसों के लिए उसने अपनी उम्र से बड़ी एक पागल लड़की से शादी कर ली”?

 ‘अनकही’

यह कहानी हृदय प्रत्यारोपण विषय पर रची गई है। घटनाओं का ताना-बाना बड़ी खूबसूरती से बुना गया है। भाषा-शैली और कहन का सौन्दर्य देखिये-
डॉक्टर अपनी बात कहकर चले गए और कविता खड़ी उन्हें जाते हुए देखती रही। “डॉक्टर ने ऐसा क्यों कहा, ऐसा तो डॉक्टर तभी कहते हैं जब मेडिकल साइंस को अपनी सीमा रेखा का अहसास हो जाता है, जब उनके हाथ में कुछ नहीं रह जाता तो वे भी भाग्य की स्थिति को स्वीकारने लगते हैं”।

 “सयाना कौवा बैठता है”

कहानी के नायक को लोग अपने लड़कों का रिश्ता तय होने पर लड़की के गुण-दोष जाँचने के लिए आमंत्रित करते हैं। वो इस काम में इतना सिद्ध हस्त है कि क्या मज़ाल जो लड़की का एक भी दोष उसे चकमा दे सके। समय पर उसके अपने बेटे की शादी के अवसर पर उसके साथ ऐसा वाकया होता है कि उसे अपनी ही नज़रों से छिपने को जगह नहीं मिलती। पूरी कहानी बहुत रोचक है उसका अंतिम अंश देखिये-

“हवा को रोक पाना नामुमकिन होता है, मामाजी (नायक) जानते थे, अब वे घुटनों में मुँह डाले अपने बचाव के लिए पुरानी  कहावत सोच-सोच कर रोए जा रहे थे”।

 धुलेंडी

इस कहानी में नायिका शालिनी के माध्यम से एक ग्रामीण महिला की व्यथा का चित्रण इस खूबी से किया गया है कि अंत तक साँस रोके पढ़ती गई।  ग्रामीण महिला का पति पत्नी से सारी सेवाएँ तो वसूल करता है लेकिन अपने साथ कहीं लेकर नहीं जाता, और औरों के सामने अपमानित करने से भी नहीं चूकता। कहानी वक्र गति से चलती हुई ऐसे मोड पर खत्म होती है कि मैं चमत्कृत हुए बिना न रह सकी।

तुम्हारे लिए

मनोविज्ञान को केंद्र में रखकर बुनी हुई यह कहानी बहुत प्रभावी बन पड़ी है। यह पुस्तक की अंतिम कहानी है, नायिका परिस्थितियों को अपने अनुकूल देखकर बड़े उत्साह से मनोविज्ञान विषय लेकर शोध तक पहुँचती है लेकिन परिस्थितियाँ उसे अपने जाल में इस तरह जकड़ लेती हैं, कि वो छटपटाकर रह जाती है और कहानी पाठक के सामने प्रश्न चिह्न बनकर खड़ी हो जाती है।
अर्चना जी ने उतार चढ़ावों को इतनी खूबसूरती से चित्रित किया है कि  कहानी अंत तक रोचक बनी रहती है।

औरत हो क्या!

 विषय तो जाना पहचाना है लेकिन कलम का कमाल देखेंगे तो विस्मित रह जाएँगे। जहाँ पुरुषों को गृहिणी की कोई सहायता न करने के लिए ताने दिये जाते हैं वहीं अगर कोई संवेदनशील पुरुष यह करने लगे तो यही औरतें किस कदर उसके अन्तर्मन को चोट पहुँचाकर अपनी पीठ थपथपाती हैं, यह आप सिर्फ कहानी पढ़कर ही जान सकते हैं।

इनके अलावा 'रोशनी', चिट्ठी में, "बंद कमरे का धुआँ","मंथन"और "स्वाहा"
कहानियाँ भी विविध विषयों पर पाठक से सवाल पूछती हुई जवाब का इंतज़ार करती नज़र आती हैं।

संग्रह में कुल बारह कहानियाँ संकलित हैं और हर कहानी का कथानक अलग-अलग विषय वस्तु को प्रस्तुत करता हुआ अपने पात्रों के साथ गहरी पैठ बना लेता है। मैं हर कहानी दो बार पढ़ चुकी हूँ और आश्चर्य नहीं कि कुछ दिन बीतने पर फिर से पढ़ने लगूँ। मैं अर्चना जी को  हृदय की गहराइयों से शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। निश्चित ही भविष्य में वे एक बड़ी कथाकार के रूप में उभर कर आएँगी।      

-कल्पना रामानी

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-कल्पना रामानी

कथा-सम्मान

कथा-सम्मान
कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब के इस अंक में प्रकाशित मेरी कहानी "कसाईखाना" को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.चित्र पर क्लिक करके आप यह अंक पढ़ सकते हैं

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)
इस अंक में पृष्ठ ५६ पर कमलेश्वर कथा सम्मान २०१६(मेरी कहानी कसाईखाना) का विवरण दिया हुआ है. चित्र पर क्लिक कीजिये