नाग को दे दो....
नाग
को दूध पिलाओ...
अभी
भोर का तारा भी नहीं डूबा था कि वातावरण में आवाज़ें और साथ में बीन के मधुर स्वर
गूँजने लगे। उस गरीब बस्ती में पौ फटते ही जाग हो जाती है और आज तो नागपंचमी है, सभी बच्चे नहा धोकर तैयार थे। नाग देखने की उत्सुकता सबके मन को रोमांचित कर
रही थी। महिलाएँ पूजा के लिए दूध की कटोरी के साथ पूजा की थालियाँ सजाने में
व्यस्त थीं। आवाज़ सुनते ही बच्चे दौड़ पड़े। सपेरे ने अपने कंधे से एक लाठी के सहारे
लटकी हुई दो पोटलियाँ उतारकर एक तरफ अपना डेरा जमा लिया। बच्चे आसपास एकत्र हो गए।
छोटी सी चुनिया ने पड़ोस के बालक से पूछा-
“मन्नू तुम दूध पीकर आए हो?”
“नहीं आज दूध केवल नाग को ही पिलाया
जाएगा, क्या तुमने पी लिया है?”
“नहीं मुझे भी माँ ने नहीं दिया मन्नू, पर मुझे दूध अच्छा लगता है”
सपेरा
गौर से उनकी बातें सुन रहा था, बच्चों
को पास बुलाकर पूछा-
“नाग देखोगे बच्चों?”
“हाँ, पर हमें उससे बहुत डर लगता है, हम
दूर से ही देखेंगे” मुनिया ने कहा
“डरने की कोई बात नहीं है बच्चों, नाग को जो बिना कारण छेड़ता और सताता है
उसे ही वो डसता है, वह हमारा मित्र है, शत्रु नहीं।
मैं
बीन बजाता हूँ, देखना नाग कैसे नृत्य करता है, आनंद आए तो तालियाँ ज़रूर बजाना”
कहते हुए उसने एक पोटली खोल ली और सुन्न पड़े हुए नाग को बाहर निकाला। बच्चे दूर हटकर खड़े हो गए। सपेरा बीन बजाता रहा और नाग झूमता रहा। तभी उस मोहल्ले की महिलाएँ पूजा की थाली लेकर आ गईं और घेरा बनाकर नाग की पूजा के लिए बैठ गईं। जल, कुमकुम, अक्षत, फूल से पूजने के बाद आशीष माँगते हुए दूध की कटोरियाँ आगे कर दीं। सपेरे ने बच्चों को भी पास बुला लिया। माओं को देखकर उनका डर कम हो गया था वे कौतूहल से पास आकर सब देखते रहे। सपेरे ने एक कटोरी से थोड़ा सा दूध अपने पात्र में निकालकर नाग के मुँह से लगा दिया फिर सभी बच्चों के हाथ में दूध की कटोरी देते हुए महिलाओं से कहा-
कहते हुए उसने एक पोटली खोल ली और सुन्न पड़े हुए नाग को बाहर निकाला। बच्चे दूर हटकर खड़े हो गए। सपेरा बीन बजाता रहा और नाग झूमता रहा। तभी उस मोहल्ले की महिलाएँ पूजा की थाली लेकर आ गईं और घेरा बनाकर नाग की पूजा के लिए बैठ गईं। जल, कुमकुम, अक्षत, फूल से पूजने के बाद आशीष माँगते हुए दूध की कटोरियाँ आगे कर दीं। सपेरे ने बच्चों को भी पास बुला लिया। माओं को देखकर उनका डर कम हो गया था वे कौतूहल से पास आकर सब देखते रहे। सपेरे ने एक कटोरी से थोड़ा सा दूध अपने पात्र में निकालकर नाग के मुँह से लगा दिया फिर सभी बच्चों के हाथ में दूध की कटोरी देते हुए महिलाओं से कहा-
“बहनों, आप सबने तो पूजा करके पुण्य कमा लिया, लेकिन मैं इन बच्चों के हक का दूध अपने बच्चों को पिलाकर पाप का भागी
नहीं बनना चाहता, क्योंकि नाग कभी दूध नहीं पीता”। कहते हुए वो अपना समान समेटकर आगे बढ़
गया।
- कल्पना रामानी
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