रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

कुदरत के रंग

Thursday 15 October 2015

नाखून

माँ, मेरी प्यारी माँ!

बहुत नाराज़ हो न! मुझे भी तुम्हारा इतना सुंदर दुपट्टा खराब हो जाने का बहुत दुख है, बस अब यह गरबा उत्सव निकल जाए फिर अपने ये लंबे नाखून काट दूँगी। मैं जानती हूँ माँ, तुम खुद को कभी नहीं बदल सकोगी। दिन भर दुपट्टा ओढ़े रखना...हुंह! कहते हुए नीलू शुभदा के गले से लिपट गई।

शुभदा की एक ही तो संतान है, प्यारी सी बेटी नीलू, जो अब १८ वर्ष की हो चुकी है, इसी साल से कॉलेज जाना शुरू किया है। मुंबई आए उन्हें दो साल ही हुए हैं। अमित के कंपनी जॉब के कारण गाँव छोड़कर शहर आ गए। यहाँ आकर बेटी को तो पहनने ओढ़ने और घूमने फिरने की पूरी आज़ादी सौंप दी, लेकिन अपने बरसों के संस्कार कैसे भूलती? घर में तीन सदस्य हैं और सबका अलग-अलग मित्र वर्ग, दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता है इसलिए वो सलवार सूट के साथ दुपट्टा ओढ़े रहती है, वैसे यहाँ आकर उसे बहुत सुकून मिला है।

साफ सुथरी लंबे परिसर में फैली टाउनशिप की २० इमारतों में से एक में उसका भी सुंदर सा फ्लैट है। पूरी सुरक्षा, हरियाली, स्वच्छ वातावरण, और साथ में अनेक सुविधाएँ। ५-५ इमारतों का समूह एक कॉलोनी का रूप ले लेता है जिसमें बगीचा, झूले, तरणताल, भ्रमण-पथ आदि अलग अलग हैं।

सुबह-शाम नीचे प्राकृतिक वातावरण में टहलते हुए उसका मन जैसे उड़ने लगता। तुलना करती तो गाँव का माहौल इसके सामने कहीं नहीं ठहरता। शुरू में अपनों से बिछड़ने का बहुत दुख था लेकिन यहाँ सबका अपना-अपना मित्र-वर्ग बन जाने से अच्छा लगता है। हर त्यौहार सब मिलकर ही मनाते हैं, और एक परिवार का ही बोध होता है। लेकिन एक टीस तो मन में उभरती ही थी कि काश, यह सब गाँव में होता!

बरसात अभी पूरी तरह विदा भी नहीं हुई कि दुर्गा-पूजा के साथ गरबा उत्सव की तैयारियाँ पूरी टाउनशिप में शुरू हो गईं। वैसे भी मुंबई की बारिश तो कभी बिना बुलाए मेहमान की तरह हाजिर हो जाती है, सो इसकी परवा न करते हुए हर इलाके में अंदर परिसर के अलावा बाहर भी खुले परिसर में झाँकियाँ सजने लगीं। रोज़ शाम को नीलू और शुभदा अपनी-अपनी मित्रों के साथ झाँकियाँ देखने निकल जातीं। नीलू का शौक देखते हुए शुभदा ने उसे गरबा-उत्सव के लिए लहँगा-चोली दिलाया। रात में देर तक सभी सहेलियाँ मिलकर नीचे हॉल में अभ्यास करतीं।

उत्सव शुरू हो गए।  रात में नीलू अपनी सहेलियों के साथ गरबा खेलने जाती और शुभदा अमित के साथ हर परिसर में घूम-फिर कर आनंद लेती।  नीलू और उसकी सहेलियों ने तय किया कि वे अंतिम दिन अपने परिसर के बाहर मैदान में सजी हुई माँ दुर्गा के भव्य झाँकी-स्थल पर गरबा खेलने जाएँगी। वहाँ २४ घंटे सुरक्षा कर्मियों का सख्त पहरा रहता था, अतः सबको माँ-पिता की स्वीकृति भी मिल गई।

आखिर वो दिन आ गया। लहँगे चोली में तैयार नीलू अति सुंदर लग रह थी। वह बार-बार अपने रँगे हुए लंबे नाखून और मेहँदी से सजी हथेलियाँ देखती और स्वयं पर मुग्ध होती हुई सहेलियों के साथ गरबा-स्थल की ओर चल दी। उस दिन अमित ने आने में देर कर दी तो शुभदा अपनी सोसाइटी परिसर में ही घूम फिर कर लौट आई।

वहाँ कुछ देर गरबा खेलने के बाद नीलू थकान दूर करने के लिए सहेली के साथ खाद्य सामग्री से सजे स्टालों की ओर आ गई। कुछ नाश्ता करने के बाद जैसे ही वे पानी के लिए बाहर की तरफ पहुँचीं अचानक तेज़ हवा के साथ बारिश शुरू हो गई। ओहो यह मुंबई की बारिश भी अजीब है, चाहे जब...सोचते हुए दोनों सखियाँ पंडाल की ओर दौड़ पड़ीं।  अचानक नीलू का पाँव अपने लंबे लहँगे में अटका और वह वहीं गिर गई। सहेली आगे निकल गई थी। हर तरफ अफरा तफरी मच गई थी। तभी एक गरबा खेलने आए हुए एक युवक ने उसकी उठने मैं सहायता की और बारिश से बचाकर एक तरफ आड़ में ले गया। उधर बारिश तेज़ हुई जा रही थी, इधर नीलू घबराहट के मारे परेशान।

सहसा युवक ने एकांत पाकर उसे अपनी बाहों में कस लिया और बेतहाशा चूमने लगा। नीलू की साँस फूल गई। जितना छूटने का प्रयास करती, युवक उतनी ही मजबूती से जकड़ लेता। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा, अनिष्ट की कल्पना मात्र से ही सिहर उठी। उसने मन ही मन माँ दुर्गा के नव रूपों का स्मरण करके उसके शक्ति रूप पर ध्यान केन्द्रित किया और युवक को गले से लिपटाकर उससे प्यार करने का अभिनय करने लगी। अँधेरे में युवक उसके मनोभावों को समझ न पायाऔर... नीलू ने दोनों हाथों के नाखून तेज़ी से उसकी गर्दन में  गड़ा दिये। 
युवक दर्द से बिलबिलाने लगा
बंधन ढीला होते ही नीलू दौड़ पड़ी। हाँफती-काँपती सीधी अपने फ्लैट के डोर पर ही रुकी और बेल को तब तक दबाए रखा जब तक घबराई हुई शुभदा ने आकर दरवाजा न खोला। बेटी को बदहवास स्थिति में देखकर आशंकित हो उठी  उसे गले से लगाकर पीठपर हाथ फेरने लगी। कुछ संयत होकर नीलू ने रोते रोते पूरी आपबीती सुना दी और कहा-

माँ आज अगर ये लंबे नाखून न होते तो तुम्हारी बेटी का न जाने क्या हश्र होता। शुभदा ने भरे गले से कहा-

बेटी, आज माँ दुर्गा ने तेरी रक्षा की है, आज के बाद तुम्हें कभी नाखून काटने के लिए नहीं कहूँगी। 

-कल्पना रामानी         

  

2 comments:

Unknown said...

Bahut Sunder

sharda monga (aroma) said...

Nice and nicely narrated.

Thank you.

पुनः पधारिए

आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

-कल्पना रामानी

कथा-सम्मान

कथा-सम्मान
कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब के इस अंक में प्रकाशित मेरी कहानी "कसाईखाना" को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.चित्र पर क्लिक करके आप यह अंक पढ़ सकते हैं

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)
इस अंक में पृष्ठ ५६ पर कमलेश्वर कथा सम्मान २०१६(मेरी कहानी कसाईखाना) का विवरण दिया हुआ है. चित्र पर क्लिक कीजिये