अपने
रोते हुए शिशु को अचानक चुप होते देख द्वार पर काफी देर से पड़ोसन से बातें करती
हुई रमा ने सोचा शायद उसे भूखे ही नींद आ गई और वह घबराहट में अंदर की तरफ भागी, देखा कि उसकी सास शीला शिशु को चम्मच
से दूध पिला रही है। रमा गुस्से में भरकर बोल उठी “यह आप क्या कर रही हैं माँजी, दो
माह के शिशु को ऊपर का दूध! कहते हुए शिशु को शीला के हाथों से खींचकर कमरे में
चली गई। सास अवाक रह गई। शाम को रमा की सहेली नीता उससे घर पर मिलने आई और रमा से
बाजार चलने का आग्रह करने लगी। रमा ने सुबह वाली बात बताते हुए कहा कि वो किस मुँह
से मुन्ने को सास के सुपुर्द करे। नीता इस
घर से अच्छी तरह परिचित थी,
बातों बातों में उसने पूछा “चाची कहाँ है?” वह शीला को चाची बुलाती थी। “वो
मंदिर गई हैं”। तभी द्वार खुला और शीला ने प्रवेश
किया। नीता को देखते ही बोली
“अरे बेटी तुम! बहुत दिन के बाद आई हो”।
“जी चाचीजी, समय ही नहीं मिलता, आज सोचा कि रमा को साथ लेकर बाजार चली
जाऊँ कुछ आवश्यक ख़रीदारी के साथ ही मन भी बहल जाएगा, लेकिन....”
सुनते
ही शीला झट से बोली
“यह तो बहुत अच्छी बात है बेटी, रमा भी अकेली परेशान हो जाती है”
और
उसने रमा से प्यार से कहा
“तुम नीता के साथ चली जाओ रमा!”
“पर माँजी...”
“मुन्ने की चिंता न करो, उसे मैं देख लूँगी”।
रमा
पर मानों घड़ों पानी पड़ गया।
-कल्पना रामानी
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