रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

कुदरत के रंग

Thursday 5 May 2016

डायन कहाँ है

   
   विनी ने घर पहुँचते ही देखा कि आँगन में एक साधु-वेशधारी बाबा मौजूद हैं, निकट ही उनका बड़ा सा थैला रखा हुआ था और उसकी माँ तथा मुहल्ले की कुछ औरतें-बच्चे उसे घेरे हुए हैं। माँ के हाथ में एक चादर भी थी। वो समझ गई कि आज फिर कोई ठग इन भोली भाली महिलाओं को चकमा देने उनकी बस्ती में पहुँच गया है। यह एक गाँव के सीधे-साधे लोगों की बस्ती थी, जहाँ आए दिन घर के बड़े बच्चों के स्कूल और पुरुषों के काम पर जाने के बाद कोई न कोई ढोंगी बाबा आकर औरतों को अपनी चिकनी चुपड़ी लच्छेदार बातों में लपेटकर कुछ न कुछ सामान, अनाज या रकम अपने झोले के हवाले कर चलते बनते थे। इस गाँव की महिलाएँ रूढ़िवादी परिवारों की कम पढ़ी लिखी ही थीं, वे जल्दी ही उनकी बातों में आ जाती थीं और अपने-अपने दुख दूर होने की उम्मीद में अपनी जमा पूँजी इन ठगों के हवाले कर दिया करती थीं।  

  विनी दसवीं कक्षा की छात्रा थी, आज किसी कारणवश स्कूल की जल्दी छुट्टी हो गई थी और आते ही यह नज़ारा नज़र आ गया।
माँ ने उसे देखते ही कहना शुरू कर दिया –
देखो विनी, मैं न कहती थी कि हमारे घर पर किसी ऊपरी हवा का साया है, तभी परेशानियाँ पीछा नहीं छोड़ रहीं, ये साधु महाराज
बहुत पहुँचे हुए हैं, हमारे घर की ही एक कटोरी में भस्म मलकर एक मंत्र फूँका और कटोरी हाथ में लेकर घर के हर कोने में घूमकर आने के लिए कहा। दूसरे कमरे में जाते ही कटोरी एकदम गरम होने लगी और हाथ से छूटकर गिर गई। महाराज का कहना है कि उसी कोने में डायन ने अपना डेरा जमा लिया है। उससे मुक्ति के लिए आधी रात को मसान में जाकर दरगाह पर चादर चढ़ाने से हमारे घर से डायन चली जाएगी। अब हम तो आधी रात को मसान में जा नहीं सकते इसलिए बाबा से ही चादर चढ़ाने का अनुरोध कर रही हूँ।

विनी मन ही मन मुस्कुरा उठी, उसे सामान्य विज्ञान में पढ़ा हुआ अंश याद आ गया कि किसी विशेष रसायन के संपर्क में आने से धातु विशेष गर्म होने लगती है, कहने लगी-
मैं भी वह चमत्कार देखना चाहती हूँ।
बाबा बोले-क्यों नहीं बेटी, एक कटोरी ले आओ 
विनी कटोरी ले आई तो बाबा ने उसमें झोले से एक डिबिया निकालकर उसमें से भस्म कटोरी में मलकर मंत्र फूँका और विनी को घर के हर कोने में घूमकर आने के लिए कहा। लेकिन विनी ने बाबा से कटोरी न लेते हुए उसे कुछ देर अपने हाथ में पकड़कर रखने को कहा और माँ की ओर देखकर बोली-
माँ अभी पता चल जाएगा कि डायन कहाँ है?
साधू बाबा नाराज़ होते हुए बोले-
“बेटी हमारी बात का मज़ाक न उड़ाओ, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए, माताजी की समस्या सुनकर ही यहाँ रुका था अब जा रहा हूँ”। कहते हुए कटोरी नीचे रखने लगे लेकिन विनी बोली-
“बाबा कटोरी पकड़कर रखिए, डायन तो घर में है न आप क्यों घबरा रहे हैं?”

तब तक कटोरी गरम हो चुकी थी और बाबा के हाथ से छूटकर नीचे गिर गई। पाँसा पलटते ही बाबा तेज़ी से अपना झोला सँभालकर उठ खड़े हुए और जैसे ही जाने के लिए मुड़े, सामने पुलिस देखकर उसके छक्के छूट गए। विनी ने आते से ही माजरा समझकर पुलिस को फोन कर दिया था।   

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-कल्पना रामानी

कथा-सम्मान

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कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब के इस अंक में प्रकाशित मेरी कहानी "कसाईखाना" को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.चित्र पर क्लिक करके आप यह अंक पढ़ सकते हैं

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)

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