“माँ, हम मूवी देखने जा रहे हैं, रात का खाना भी बाहर ही खाकर आएँगे, गुड़िया सो रही है, जाग जाए तो उसे ज़रा बहला देना”
कहते हुए अतुल ने अचला की ओर देखा। अचला ने
मुस्कुराकर हामी भर दी। बेटे की कल छुट्टी है तो एक दिन बहू के साथ घूमना फिरना हो
जाता है। अचला को बाहर का खाना नहीं रुचता और बढ़ती उम्र में घूमने या मूवी देखने
का भी कोई शौक नहीं तो वो कहीं बेटे-बहू के साथ नहीं जाती। वैसे तो वे अपनी तीन
वर्षीया पुत्री गुड़िया को साथ ही ले जाते हैं,
अचला को परेशान नहीं करना चाहते, लेकिन
वो अभी तक उठी नहीं थी तो सोचा माँ बहला लेगी।
उसने गुड़िया के जागने से पहले ही अपने लिए दलिया
बना लिया और बालकनी में टहलने लगी। कुछ देर में ही गुड़िया जाग गई और माँ को न
देखकर रोने लगी। दादी उसे बहलाने में जुट गई।
“चुप हो जा बिटिया,
ममा आपके लिए टॉफी लेने गई है, आती ही
होगी” लेकिन चुप होने के बजाय वो और
ज़ोर से रोने लगी।
हड्डियों के दर्द के कारण अचला उसे गोद में नहीं
उठा सकती थी, वहीं नेपकिन गीली करके आई और पास
ही बैठकर उसका मुँह पोंछा और प्यार से सहलाने लगी। उसके खिलौने लाकर सामने रख दिये
तो धीरे-धीरे गुड़िया चुप हो गई। उसके चुप
होते ही अचला झट से उठकर दूध गरम करके ले आई और उसे पिलाने लगी। लेकिन गुड़िया
मचलते हुए बोली- दादी बनाना...
“क्या बनाना बेटा,
पहले दूध पी लो फिर आप जो कहोगी हम बनाएँगे।”
-दूद नईं… बनाना...
अचला एक कटोरी में दलिया ले आई और चम्मच देकर बोली-
“लो बेटी दलिया बनाओ और खाओ।“
गुड़िया ने मचलते हुए कटोरी दूर ठेल दी और फिर ‘बनाना’
की रट लगाने लगी
अचला परेशान हो गई,
न जाने इसे क्या बनाना है, फिर कुछ
सोचकर थोड़ा आटा गूँथकर लोई और खिलौना बेलन-चकला लाकर नीचे दरी बिछा दी और गुड़िया
को बिस्तर से उतारकर कहा-
“लो बेटी आप रोटी बनाओ...ऐसे...फिर हम खाएँगे”
गुड़िया खुश होकर व्यस्त हो गई तो अचला फिर से दूध
लाकर उसे पीने के लिए मनाने लगी।
लेकिन गुड़िया ने दूध न लेते हुए बेलन-चकला,
भी परे धकेल दिया और फिर से ‘बनाना...’
की रट लगाने लगी
अचला ने हैरान होकर बेटे को फोन करना चाहा लेकिन
उसकी मोबाइल का स्विच ऑफ था। क्या करे,
बच्ची को कैसे चुप कराए…कपड़ों की
कतरन लाकर दी कि वो गुड़िया बनाए, कागज़
लाकर दिये कि वो नाव बनाए लेकिन गुड़िया ने ‘बनाना’
की रट नहीं छोड़ी। अचला का पहली बार बाल-हठ से सामना हुआ था। सोचा,
नीचे बगीचे में ले जाऊँ,
बच्चों को देखकर शायद ज़िद भूल जाए। बोली- “बेटा चलो हम झूला झूलेंगे।
गुड़िया खुश हो गई,
नीचे जाते ही वो बच्चों के साथ मस्ती करने लगी,
फिर झूले में बैठ गई। समय काफी हो चुका था,
गुड़िया ने न दूध पिया था न ही कुछ खाया था,
अचला को चिंता सताने लगी, बेटे-बहू को लौटने में देर हो सकती है,
क्या करे। अँधेरा होने लगा तो गुड़िया को वापस ऊपर ले आई। फिर से दलिया परोसकर ले आई कि शायद बच्ची मेरे साथ कुछ
खा ले लेकिन नहीं, दलिया देखते ही गुड़िया फिर ‘बनाना’
की रट लगाते हुए रोने लगी। फिर रोते रोते ही उसे नींद आ गई। अचला से भी कुछ नहीं
खाया गया वो बेटे बहू का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद वे लौटे तो अचला ने एक अपराधिनी
की तरह पूरा किस्सा बयान किया।
सुनते
ही बेटा तो हँसी से लोटपोट हो गया लेकिन बहू ने दौड़कर गुड़िया को भूखी जानकर उठा
दिया और बेतहाशा चूमने लगी, गुड़िया
नींद में ही बनाना...बनाना...टेरती रही। बेटे ने पत्नी की ओर मुखातिब होकर कहा-
“रीना, कल तुम फल
सब्जियों के नामों वाली हिन्दी-अंग्रेज़ी की सचित्र किताब माँ के लिए ले आना,
उनको कुछ तो अँग्रेजी का ज्ञान होना चाहिए न...”
रीना तुनककर बोली- किताब आएगी लेकिन माँ जी के लिए
नहीं, गुड़िया के लिए-
मुझे अपनी बच्ची
पर इस उम्र में अंग्रेज़ी नहीं लादनी...वो सबसे पहले हिन्दी
सीखेगी।
-कल्पना रामानी
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