रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

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Saturday 10 September 2016

दासता के दाग /लघु कहानी

हिन्दी दिवस   के लिए चित्र परिणाम
“मिनी बेटे जल्दी आ जाओ नाश्ता लगा दिया है...”
कहते हुए रवीना ने टेबल पर आलू-सैंडविच के साथ अलग-अलग दो प्रकार की चटनी की प्यालियाँ सजा दीं, अपनी सास सुवर्णा को उनके कमरे में नाश्ता देकर आई और पति असीम को भी आवाज़ लगाकर कुर्सी खींचकर बैठ गई।
असीम का सरकारी जॉब है और रवीना एक कॉनवेंट स्कूल में हिन्दी की शिक्षिका है। आज हिन्दी-दिवस है, रवीना सफ़ेद साड़ी और उसी के स्कूल की पहली कक्षा की छात्रा मिनी सफ़ेद यूनिफ़ोर्म में तैयार हुई थीं।
उसने मिनी को फिर से आवाज़ लगाई-
“बेटे जल्दी नाश्ता कर लो, आज थोड़ा जल्दी चलेंगे”।
-जी ममा, आती हूँ...
तभी असीम ने रवीना को टोक दिया- “रवीना, मैं तुम्हें कितनी बार समझा चुका हूँ, कि मिनी से अंग्रेजी में ही बात किया करो ताकि वो भी अंग्रेजी में जवाब दे सके. हिन्दी बोलने से उसका अंग्रेज़ी उच्चारण बिगड़ जाएगा”। कहते हुए असीम भी नाश्ते के लिए बैठ गया। पति की बात सुनते ही रवीना तैश में आकर बोली-
“देखिये, आप घर में उसे हिन्दी बोलने से नहीं रोक सकते। अंग्रेज़ी के लिए स्कूल परिसर ही काफी है”।
-देखो, मैं पहले भी कह चुका हूँ, मुझे उसे कूपमंडूक नहीं बनाना, नाश्ता करते हुए असीम बोला।
“और मैं उसे गुलाम पंख नहीं दे सकती...”
-समझने की कोशिश करो रवीना, यह उसके कैरियर का सवाल है।
“हिन्दी बोलने से कैरियर बिगड़ नहीं जाएगा असीम, आप अपनी ही मातृभाषा, राष्ट्रभाषा को हेय क्यों समझते हैं? आखिर कब तक हम इस तरह हिंदी का दमन करके अंग्रेजी को नमन करते रहेंगे?”
-मैं इस बारे में कुछ सुनना नहीं चाहता...और असीम गुस्से में नाश्ता छोड़ प्लेट को धक्का देकर उठ खड़ा हुआ… प्लेट चटनी की कटोरी से टकराई, और लुढ़कती हुई सामने बैठी रवीना की साड़ी पर चित्रकारी करती हुई नीचे जा गिरी। मिनी का सफ़ेद स्कर्ट भी छींटों से नहीं बच पाया। आवाज़ सुन सुवर्णा कमरे से बाहर आ गई तो देखा, बेटा जा चुका था और अपनी सफ़ेद साड़ी की दुर्दशा देखकर रवीना की आँखों से रुलाई फूटने को थी। अब वो क्या पहन कर स्कूल जाए..., हिंदी दिवस को भी आज सफ़ेद पोशाक के लिए नियत दिन को ही आना था. समय हो चुका था कार्यक्रम भी शुरू होने वाला होगा। मिनी हक्की-बक्की सी बैठी रह गई थी। सुवर्णा ने सारी स्थिति भाँपकर कहा-
बेटी तुम दोनों कमरे में चलो, कपड़े बदलकर मुझे दे दो, मेरे अनुभूत नुस्खों से सामना होते ही सारे जिद्दी दाग दफा हो जाते हैं, यह कुछ भी नहीं, दस मिनिट देर हो भी गई तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
कुछ ही देर में सुवर्णा ने साड़ी और स्कर्ट को इस तरह बेदाग कर दिया मानों कुछ हुआ ही न हो और मुस्कुराते हुए रवीना को कपड़े देकर बोली-
"अब जल्दी से तैयार हो जाओ बेटी, अपना मन ख़राब मत करो"
"माँ जी, कपड़ों के ये दाग तो पलक झपकते ही दूर हो गए लेकिन क्या आपका कोई नुस्खा भारत माँ के आँचल पर अंग्रेजों के छोड़े हुए दासता के दाग मिटा पाएगा”?

-कल्पना रामानी

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कथा-सम्मान

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कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)

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