तमन्ना ने
जब से माँ से सुना कि ३१ दिसंबर को वे सब नए साल का स्वागत करने क्लब जाने वाले हैं
तो वो हर दिन कैलेंडर लेकर उलझी रहती और बेसब्री से ३१ दिसंबर का इंतज़ार करने लगी।
आखिर वो दिन आ ही गया और वो नई ड्रेस में तैयार होकर माँ-पिता के साथ क्लब पहुँच
गई। तरुणा ने अपनी ६ वर्षीय बिटिया को पोशाक ही ऐसी दिलाई थी कि वो किसी राजकुमारी
से कम नहीं लग रही थी। क्लब की सजावट देखकर तो वो दंग रह गई। मुख्य द्वार खुशबूदार
फूलों से सजाया गया था। एक खुले मैदान में कार्यक्रम की व्यवस्था की गई थी। सामने
ही बड़ी सी घड़ी टँगी हुई थी। पूरा मैदान दूधिया रोशनी,
रंगीन पन्नियों और गुब्बारों से सुसज्जित था। म्यूज़िक गूँज रहा था। खाने पीने की चीजों के स्टाल लगे हुए थे। कुछ
लोग, कुर्सियों पर बैठे थे तो कुछ स्टेज पर डांस कर
रहे थे। वो भी माँ-पिता के साथ कुर्सी पर बैठ गई। तरह तरह के गेम खेले जा रहे थे।
तमन्ना सब कुछ विस्मित सी देखती रही, आखिर १०
बजते-बजते वो ऊबने लगी और माँ से पूछा-
“नया साल कब आएगा माँ? मैं
भी उसका स्वागत करूँगी”।
“बस बेटा थोड़ी ही देर में जब उस घड़ी के दोनों काँटे सबसे ऊपर
१२ पर आ जाएँगे ...”। माँ ने घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा।
तमन्ना
कुर्सी पर बैठे-बैठे लगातार मुख्य
द्वार की ओर देखती रही फिर ऊँघने लगी और उसे नींद आ गई अचानक १२ बजे शोरगुल और
आतिशबाज़ी की आवाज़ें गूँजीं तो वो उठ गई और माँ से पूछा-
“नया साल आ गया क्या माँ”?
“हाँ बेटी,
अब हम खाना खाकर घर चलेंगे”।
“पर माँ वो है कहाँ?
मैं उसका स्वागत करूँगी”।
तरुणा मुस्कुराते हुए बोली-
“बेटी, नया साल
कोई मनुष्य नहीं होता, पुराना साल समाप्त होते ही नया
लग जाता है। आज के बाद घर में हम नया कैलेंडर लगाएँगे”।
सुनकर तमन्ना उदास हो गई। बुझे मन से थोड़ा सा खाना
खाया और घर आकर अपने कमरे में कंधे से लटका
हुआ बोतल व नैपकिन वाला छोटा सा बैग उतारकर
पटका फिर उसी ड्रेस में सो गई।
सुबह वो बड़ी देर तक सोई रही। तरुणा ने उसके कमरे
में जाकर जब उसके बैग से बोतल और नैपकिन निकाले तो उसे उसमें कुछ और भी होने का
एहसास हुआ। देखा तो उसके अंदर एक छोटी सी मुरझाए फूलों की माला थी जो पतले से धागे
में पिरोई गई थी।
तरुणा ने अपनी बगिया के फूल पहचान लिए और
वस्तुस्थिति समझने में उसे देर न लगी। न
जाने कब बिटिया ने उसकी नज़र बचाकर नए वर्ष के स्वागत के लिए कितनी उमंग से यह माला
गूँथी होगी, लेकिन उसकी तमन्ना अधूरी रह
गई... तरुणा
का मन बेटी के भोलेपन पर द्रवित हो गया, उसपर बहुत
प्यार उमड़ आया। और... उसने नींद में ही बिटिया का सुंदर मुख चूम लिया।
- कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत सुन्दर
Post a Comment