रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

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Monday 9 January 2017

स्वाद /लघुकथा

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 गर्मी की एक शाम को रमा चौपाटी पर अपने पति अमित के साथ चाट का आनंद ले रही थी, तभी वहाँ एक ७-८ वर्षीय फटेहाल बालक आया और जूठी प्लेटों की ओर इशारा करके चाट वाले से बोला-

बाबूजी, ये प्लेटें धो दूँ? सुबह से भूखा हूँ लेकिन काम नहीं मिला

नहीं मुझे आवश्यकता नहीं है बच्चे, आगे देखो...

रमा ने बालक को चाट दिलानी चाही लेकिन उसने इंकार करते हुए कहा- मैं भिखारी नहीं हूँ माँ जी”।
रमा कुछ कहती उससे पहले ही वो तेज़ी से अगले ठेले पर पहुँच चुका था। वो किंकर्त्तव्य विमूढ़ सी गरीबी और खुद्दारी का अनोखा गठबंधन देखती रह गई। 

  चाट वाले को पैसे देकर सामने ही आइसक्रीम-पार्लर पर पहुँचकर वे अपनी-अपनी मनपसंद आइसक्रीम लेकर बाहर कुर्सियों पर बैठ गए लेकिन रमा की नज़रें अब भी सामने उस बालक का पीछा कर रही थीं जो अब तक वैसे ही चाट  वालों की उस लंबी कतार में एक के बाद एक ठेले से ठेला जा रहा था।

आइसक्रीम पिघलती जा रही है रमा! कहाँ ध्यान है तुम्हारा”? 

अचानक पतिदेव की आवाज़ से वो चौंक गई और उस बालक की ओर इशारा करके बोली-

“देखो न अभी तक वो बालक भूखा फिर रहा है, कितने निर्दयी हैं ये ठेले वाले...पता नहीं उसका घर कहाँ है?”

“अरे क्या ठेले वालों की शामत आई है, जो उस बालक से काम करवाएँ...वो देखो क्या लिखा है.” कहते हुए अमित ने एक पोस्टर की ओर इशारा कर दिया जहाँ लिखा था- “बाल-श्रम करवाना कानूनी अपराध है.”

“तो क्या अब वो यों ही भटकता रहेगा? उसके लिए कुछ तो सोचो न अमित प्लीज़...!”
अमित अपनी पत्नी की  संवेदनशीलता से अच्छी तरह परिचित था, वो समझ गया अब ऐसे छुटकारा नहीं मिलने वाला, बोला-

“ठीक है तुम जल्दी आइसक्रीम समाप्त करो हम उसे समझाकर कुछ खिला-पिला देंगे और उससे पूछकर उसके घर या फिर बाल-आश्रम में पहुँचा देंगे.”

सुनते ही रमा झट से अपनी आइसक्रीम फेंककर बोली- “चलो जल्दी, वैसे भी आज आइसक्रीम में स्वाद ही नहीं है.”

- कल्पना रामानी

1 comment:

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

मार्मिक और हृदयस्पर्शी कहानी।

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-कल्पना रामानी

कथा-सम्मान

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